ख्याव में आपको बुलाना चाहिए
ख्याव में आपको बुलाना चाहिए
धड़कने दिल की सुनाना चाहिए
दग्ध सहरा हो गया है मन तिरा
प्रीत का दरिया बहाना चाहिए
दिन बहुत के बाद आया है पिया
थाल फूलों का सजाना चाहिए
हो गयी हूँ बाबली मैं इश्क में
अब पहन घुघरू थिरकना चाहिए
मस्त बादल हो गयी हूँ आज मै
मेघ सा मुझको चमकना चाहिए
मैं हमेशा के लिए तेरी हुई
इसलिए तेरा हवाला चाहिए
धर्म अपना मैं निभा पाऊँ सदा
आज तेरा वो सहारा चाहिए
झांझ औ मन्जीरें लगे बजने आज तो
हरकतों को अब कुँवारा चाहिए
शाम रजनी जब मचलने फिर लगी
आसमां में चाँद पूरा चाहिए
छोड़ कर सारा जहाँ अब रोज हर
एक नूतन सा सबेरा चाहिए
डॉ मधु त्रिवेदी