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11 Jun 2023 · 1 min read

खोलो त्रिनेत्र

खोलो त्रिनेत्र

हे शंकर! खोलो तो नेत्र
अब खोलो अपना त्रिनेत्र।

बहुत बढ़ गया पाप यहाँ
हरपल बढ़ा संताप यहाँ।

मासूमों का होत दुराचार,
बढ़ा है कितना व्यभिचार।

हुए कितने लाचार सब
कर दुष्टों का संहार अब।

खत्म करो दुष्कर्मी को,
भस्म करो विधर्मी को।

सजे फिर से कुरुक्षेत्र,
हे शंकर खोलो त्रिनेत्र।

©पंकज प्रियम

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