Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 May 2023 · 3 min read

अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस आज……

■ अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस आज…
★ दिवस विशेष पर सहालगी व चुनावी माहौल हावी
★ श्रमिकों को बनी रहेगी दो जून की रोटी की तलाश
【प्रणय प्रभात】
“मैं मज़दूर मुझे देवों की बस्ती से क्या?
अगणित बार धरा पर मैने स्वर्ग बसाए।”
ख्यातनाम कवि देवराज “दिनेश” द्वारा रचित उक्त कालजयी पंक्तियों के आधार श्रमिक समाज की महत्ता और भूमिका को रेखांकित करने वाला अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर (श्रमिक) दिवस आज 01 मई को मनाया जा रहा है। यह वही दिन है जो पूंजीपतियों को सर्वहारा श्रमिक समुदाय की उपादेयता से परिचित कराता है और श्रमिक समाज को अपने अधिकारों की समझ के लिए प्रेरित भी करता है। उन श्रमिकों को, जिनकी भूमिका किसी एक दिन की मोहताज़ नहीं।
साल-दर-साल देश-दुनिया में मनाए जाने वाले इस दिवस विशेष के मायने दुनिया भर के श्रमिक संगठनों के लिए भले ही जो भी हों लेकिन सच्चाई यह है कि भारत और उसके ह्रदयस्थल मध्यप्रदेश में मांगलिक आयोजनों के बूझ-अबूझ मुहूर्त की पूर्व तैयारियों के आपा-धापी भरे माहौल और उस पर विधानसभा व लोकसभा चुनाव के परिप्रेक्ष्य में जारी सियासी धमाचौकड़ी ने मज़दूर दिवस के परिदृश्यों को पूरी तरह से हाशिए पर ला कर रख दिया है।
बड़े पैमाने पर आयोजित होने वाले वैवाहिक कार्यक्रमों और सामूहिक विवाह सम्मेलनों की अग्रिम व्यवस्थाओं की चहल-पहल ने अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस को उन परम्परागत आयोजनों और गतिविधियों से लगभग दूर करना पहले ही तय कर दिया था, जो महज औपचारिकता साबित होने के बावजूद श्रमिक समुदाय को कुछ हद तक गौरवान्वित ज़रूर करते थे। इनमें छुटपुट कार्यक्रनों और थोथी भाषणबाज़ी की चर्चा शामिल नहीं। कारोबारी कोलाहल में दबे मज़दूरों के स्वर इस बार वातावरण में उभर पाऐंगे इस बात के आसार बेहद क्षीण बने हुए हैं, क्योंकि उनके हितों व अधिकारों की दुहाई देने वाले शासन-प्रशासन और उनके प्रतिनिधियों की ओर से इस दिवस विशेष को बीते वर्षों में भी कोई खास तवज्जो कभी नहीं दी गई थी। रही-सही कसर आसमान से बरस रही आपदा और हवा के धूल भरे थपेड़ों ने पूरी कर दी है। जिसने लोगों को नया काम शुरू कराने से भी रोक रखा है और श्रमिक समुदाय को ऊर्जा की कमी और रोग-प्रकोप के साथ झोंपड़ियों तक समेट दिया है।
कुल मिलाकर श्रमिक समाज आज भी रोज कमा कर रोज खाने की बीमारी से निजात पाता नज़र नहीं आ रहा। जो आज भी आम दिनों की तरह अपनी भूमिका का निर्वाह दिहाड़ी मज़दूर के रूप में करेगा जिनके दीदार तामझामों के बीच पूरी शानो-शौकत से निकलने वाली बारातों से लेकर भोज के आयोजनों तक श्रमसाधक के रूप में करता नज़र आएगा।
■ दिहाड़ी पर ही टिकी है हाड़-मांस की देह….
श्रमजीवी समाज आज अपने लिए मुकर्रर एक दिवस-विशेष को भी चैन से बैठा नज़र आने वाला नहीं है। फिर चाहे वो विभिन्न शासकीय-अशासकीय योजनाओं के तहत ठेकेदारों के निर्देशन में निर्माण स्थलों पर चल रही प्रक्रिया हो या जिला मुख्यालय से लेकर ग्राम्यांचल तक जारी मांगलिक आयोजनों की मोदमयी व्यस्तता। हर दिन रोज़ी-रोटी के जुगाड़ में बासी रोटी की पोटली लेकर घरों से निकलने और देर शाम दो जून की रोटी का इंतज़ाम कर घर लौटने वाले श्रमिक समाज को आज भी सुबह से शाम तक हाड़-तोड़ मेहनत मशक़्क़त में लगा देखा जा रहा है। मज़दूर दिवस क्या होता है, इस सवाल के जवाब का तो शायद अब कोई औचित्य ही बाक़ी नहीं बचा है, क्योंकि बीते हुए तमाम दशकों में इस दिवस और इससे जुड़े मुद्दों को लेकर ना तो मज़दूरों में कोई जागरूकता आ सकी है और ना ही लाने का प्रयास गंभीरता व ईमानदारी से किया जा सका है। ऐसे में उनकी भावनाओं की अभिव्यक्ति शायद नामचीन शायर मरहूम जनाब राही शहाबी साहब की इन चार पंक्तियों से ही मुमकिन हो सकती है:-
“हम हैं मज़दूर हमें कौन सहारा देगा?
हम तो मिटकर भी सहारा नहीं मांगा करते।
हम चराग़ों के लिए अपना लहू देते हैं,
हम चराग़ों से उजाला नहीं मांगा करते।।”
बहरहाल, मेरी वैयक्तिक कृतज्ञता व शुभेच्छा उन अनगिनत व संगठित-असंगठित श्रमिकों के लिए, जिनकी दिल्ली कल भी दूर थी, आज भी दूर है और कल भी नज़दीक़ आने वाली नहीं। हां, चुनावी साल में सौगात के नाम पर थोड़ी-बहुत ख़ैरात देने का दावा, वादा या प्रसार-प्रचार ज़रूर किया जा सकता है। जो सियासी चाल व पाखंड से अधिक कुछ नहीं।
●संपादक●
न्यूज़ & व्यूज़
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

1 Like · 266 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
इतना आदर
इतना आदर
Basant Bhagawan Roy
मुबहम हो राह
मुबहम हो राह
Satish Srijan
* हिन्दी को ही *
* हिन्दी को ही *
surenderpal vaidya
No battles
No battles
Dhriti Mishra
मेरा शहर
मेरा शहर
विजय कुमार अग्रवाल
"ढाई अक्षर प्रेम के"
Ekta chitrangini
धरी नहीं है धरा
धरी नहीं है धरा
महेश चन्द्र त्रिपाठी
मित्र भेस में आजकल,
मित्र भेस में आजकल,
sushil sarna
बातें की बहुत की तुझसे,
बातें की बहुत की तुझसे,
Vaishnavi Gupta (Vaishu)
****** मन का मीत  ******
****** मन का मीत ******
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
महोब्बत का खेल
महोब्बत का खेल
Anil chobisa
सुन लो दुष्ट पापी अभिमानी
सुन लो दुष्ट पापी अभिमानी
Vishnu Prasad 'panchotiya'
यहां कश्मीर है केदार है गंगा की माया है।
यहां कश्मीर है केदार है गंगा की माया है।
सत्य कुमार प्रेमी
मंजिल की तलाश में
मंजिल की तलाश में
Praveen Sain
कौन ?
कौन ?
साहिल
कभी किसी की सुंदरता से प्रभावीत होकर खुद को उसके लिए समर्पित
कभी किसी की सुंदरता से प्रभावीत होकर खुद को उसके लिए समर्पित
Rituraj shivem verma
चलो...
चलो...
Srishty Bansal
देश में क्या हो रहा है?
देश में क्या हो रहा है?
Acharya Rama Nand Mandal
■ वंदन-अभिनंदन
■ वंदन-अभिनंदन
*Author प्रणय प्रभात*
शिक्षक दिवस
शिक्षक दिवस
Ram Krishan Rastogi
ग़ज़ल/नज़्म - एक वो दोस्त ही तो है जो हर जगहा याद आती है
ग़ज़ल/नज़्म - एक वो दोस्त ही तो है जो हर जगहा याद आती है
अनिल कुमार
प्रेम🕊️
प्रेम🕊️
Vivek Mishra
सांवले मोहन को मेरे वो मोहन, देख लें ना इक दफ़ा
सांवले मोहन को मेरे वो मोहन, देख लें ना इक दफ़ा
The_dk_poetry
2709.*पूर्णिका*
2709.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
3-“ये प्रेम कोई बाधा तो नहीं “
3-“ये प्रेम कोई बाधा तो नहीं “
Dilip Kumar
राजर्षि अरुण की नई प्रकाशित पुस्तक
राजर्षि अरुण की नई प्रकाशित पुस्तक "धूप के उजाले में" पर एक नजर
Paras Nath Jha
भूत प्रेत का भय भ्रम
भूत प्रेत का भय भ्रम
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
।।अथ श्री सत्यनारायण कथा चतुर्थ अध्याय।।
।।अथ श्री सत्यनारायण कथा चतुर्थ अध्याय।।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
किसान आंदोलन
किसान आंदोलन
मनोज कर्ण
धारा ३७० हटाकर कश्मीर से ,
धारा ३७० हटाकर कश्मीर से ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
Loading...