खोदा पहाड़
यह कविता कुछ गाँव के लोगों के सामूहिक प्रयास से पहाड़ों को खोद कर एक रास्ता बनाने को लेकर लिखी है।जब आप सरकार और उसकी संस्थाओं से गुहार लगा थक जायें तो मेहनत पर विश्वास करना बनता है।
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खोदो पहाड़
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कुदाल उठाओ
पहाड़ खोदो
अपना रास्ता बनाओ
ख़ुद ही लड़ो
कोई नहीं करेगा
कुछ भी
कुदाल उठाओ
पहाड़ खोदो
ले लो मिले जो
साँप बिच्छु चूहा
चाहे मरा हुआ
सब तंत्र बेचारा है
कुदाल उठाओ
पहाड़ खोदो
सीना चीर दो
पहाड़ का
प्रहार से
निकल जाओ
उस ओर
दूसरी छोर
नया संसार
मुझे पता है
सूरज उधर से
निकलता है
उसका ही घर
उधर है
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राजेश’ललित’
स्वलिखित
३:२३
२-९-२०१९