*खोटा था अपना सिक्का*
वादों को अब वो अपने ऐसे निभा रहे हैं
आँखों पे डाले चश्मा दुनिया घुमा रहे हैं
बुद्धू है हमको समझा या फिर बना रहे हैं
बाते बना-बना कर हमको फँसा रहे हैं
करनी थी अपने मन की, करते ही जा रहे हैं
खाना था हमको दोसा, खिचड़ी खिला रहे हैं
चढ़ना था हमको बस पर, पर भीड़ ने धकेला
टूटी हुई है चप्पल, बस लड़खड़ा रहे हैं
परियों-सी उनकी बेटी, भोंदूँ-सा अपना लडका
सिक्का था अपना खोटा फिर भी चला रहे हैं