खोज करो तुम मन के अंदर
खोज करो तुम मन के अंदर,
मन मंदिर है तन के अंदर,
विराजमान जहाँ मस्त कलंदर,
सत्य है अंदर ,
जग है भ्रम वहम दर्पण।
मोह लोभ क्रोध भय काम वसन,
मारा बन घेरेंगे हर क्षण,
दुःख ढायेंगे करेंगे त्रस्त,
पथ से अपने भटकना ना तुम,
खोज ना लेना जीवन का सत्य ।
उसी मार्ग का होगे तुम ज्ञानी,
एक नया मार्ग चुन कर तुम दोगे,
समय अनुकूल होगा जो उत्तम,
मिल जाएगा उस परम सत्य से,
जिसका तुम हो एक अंश।
युगों युगों से ये धरा और जगत है,
माया जाल में उलझ चुके सब,
हर एक युग में जन्म लिए है,
देवदूत खोजने को सत्य,
मसीहा पैग़म्बर राम कृष्ण कबीर।
महान बुद्ध भी आये जग में,
देने दुःख मुक्ति का मार्ग,
किया सत्य की खोज जग में,
शांति को स्थापित करके,
कलयुग में लाये है भोर।
गुजरा युग हो या आने वाला भविष्य,
ज्ञान पिपासा जन्म लेती है जरूर,
जिसने मिटाया मिथ्या इस जग से,
खोजी है वह,
करता सत्य की खोज।
रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश ,
मौदहा हमीरपुर।