खोखला अहं
पता है तुम्हें
जब लोगों की नजरें भेदती हैं मुझे
मुझे कुछ अजीब नहीं लगता अब
क्योंकि
मैं जानती हूं ,ये लोग
गंदगी की मिट्टी में
रेंगते हुए लिजलिजे से
वो दोमुंहे जंतु हैं,
जिनके रीढ़ नहीं होती
क्या कहा था तुमने ?
तुम्हारी सोच इतनी घृणित नहीं
मगर अफसोस,
तुम्हारा खोखला दंभ और पुरूष जनित अंहकार
वही, बिल्कुल वही