खैर-ओ-खबर के लिए।
शहर दर शहर घूमता हूं तेरी एक नजर के लिए।
हर सुबह यूं ही तैयार होता हूं इक अंजाने सफर के लिए।।1।।
खामों खाँ नजरे उठती हैं महफिल में हर आने वाले पर।
काश दिख जाए तू यूं ही बस खैर-ओ-खबर के लिए।।2।।
थक कर नहीं है बैठे हम चलते चलते यूँ ही सफर में।
हमारा बैठना तो इंतजार है बस अपने रहबर के लिए।।3।।
हम तो भूले मुसाफिर हैं जहां में अन्जानी राहों के।
चल पड़ेंगे ये कदम किस्मत दे इशारा जिधर के लिए।।4।।
यूं बेवजह इबादत में कजः करना अच्छी बात नहीं।
जल्दी उठ जाया करो तुम नमाज ए फजर के लिए।।5।।
इक सिसकती सी आवाज सुनते हैं पड़ोस के घर से।
मालूम हुआ इक माँ रोती है बिछड़े हुए पिसर के लिए।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ