खेल
” स्वस्थ रहना है तो
खेल की बात कर
हो निरोग काया तो
खेल की बात कर ”
जब हम बालक के सर्वांगीण विकास की बात करते है तो खेलो की क्या भूमिका है जीवन में , स्वंय ही तय हो जाता है पर आज कालोनी के पार्कों में , संकरी गलियों से दूर मैदानों में बच्चे कम ही खेलते दिखाई देते है कारण है कि आज सोशल मीडिया इतना सक्रिय है जिसका प्रभाव नव पीढी पर भी है बालक दो साल का होते ही मोबाइल प्रयोग करना सीख लेता है फिर इतना आदी हो जाता है कि मोबाइल के लिए बिगड़ना शुरू कर देता है और खेलों से दूर हो जाता है ।
दूसरी वजह असुरक्षा की भावना है घर के बड़े बालको को बाहर नहीं जाने देते जिससे खेल की भावना पल्लवित नहीं हो पाती है । इसलिये बालक के बड़े लोग उसे मोबाइल से ही चिपका रहने देते है । पहले बालक बालिकाओं के खेल अलग अलग होते थे । बालक कन्चे गुल्ली डण्डा आदि खेल खेला करते थे । बालिकाएं गुटके , गुड्डे गुड़िया खेला करती थी ।
बदलते परिवेश में इनका स्थान सोशल मीडिया ने ले लिया है बालक बालिकाएं सुबह से शाम तक सोशल साइट्स पर इस तरह लिप्त है कि उनके पास अवकाश ही नहीं कि वे खेलों में हिस्सा ले अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करे । कुछ सरकार का रवैया भी खेल और खिलाड़ियों के प्रति उदासीनता से युक्त ऐसा है कि उनको पर्याप्त सुविधाएं प्राप्त नहीं जिससे खेल भावना पोषित नहीं हो पाती है ।