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6 Jul 2018 · 3 min read

खेल पर शा’इरों के बेहतरीन अश’आर

—संकलनकर्ता: महावीर उत्तरांचली

(1.)
इस का छुपाना खेल नहीं है
राज़ और वो भी उन का राज़
—मोहम्मद मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा

(2.)
आग के इस खेल को खेले बिना ही अब
मान बैठे कैसे तुम हम हार जाएंगे
—रमेश प्रसून

(3.)
खेल में भावना है ज़िंदा तो
फ़र्क़ कुछ हार से नहीं होता
—महावीर उत्तरांचली

(4.)
या कभी आशिक़ी का खेल न खेल
या अगर मात हो तो हाथ न मल
—सय्यद आबिद अली आबिद

(5.)
तीर अंधे हैं शिकारी अंधा
खेल है खेल में जाता क्या है
—अहसन यूसुफ़ ज़ई

(6.)
ज़िंदगी तमाशा है और इस तमाशे में
खेल हम बिगाड़ेंगे खेल को बनाने में
—आलम ख़ुर्शीद

(7.)
जारी है रौशनी का सफ़र दूर दूर तक
क्या खेल कोई खेल रहा है ख़लाओं में
—ज़फ़र इक़बाल

(8.)
खेल ही खेल में लड़की वो शरारत वाली
बात ही बात में संजीदा सी हो जाती है
—ज़फ़र कलीम

(9.)
आज सभी दुख आँसू बन कर आँख में तैर गए
खेल रही थी खेल ख़ुदाई हम मजबूरों से
—ख़ालिद अहमद

(10.)
इश्क़ तुम्हारा खेल है बाज़ आया इस खेल से में
मेरे साथ हमेशा बे-ईमानी होती है
—अफ़ज़ल ख़ान

(11.)
ज़ेहन में इक तस्वीर थी तेरी अपनी सारी दौलत जो
आज यहाँ पर खेल खेल में हम ने वो भी हारी देख
—मधुवन ऋषि राज

(12.)
खेल ही खेल में छू लूँ मैं किनारा अपना
ऐसे सोऊँ कि जगाना मुझे मुश्किल हो जाए
—नोमान शौक़

(13.)
इक रोज़ खेल खेल में हम उस के हो गए
और फिर तमाम उम्र किसी के नहीं हुए
—विपुल कुमार

(14.)
दिलों के खेल भी कैसे अजीब खेल हैं ‘शौक़’
कि मैं उदास था बाज़ी किसी ने हारी थी
—राज़ी अख्तर शौक़

(15.)
मैं ज़ाएअ’ हो चुका हूँ बहुत खेल खेल में
ऐ वक़्त अब न और लगा दाव पर मुझे
—नदीम फ़ाज़ली

(16.)
जो खेल खेल रहे थे हवाओं की शह पर
वो खेल ख़त्म हुआ मर्ग-ए-ना-गहानी से
—जालिब नोमानी

(17.)
सरज़द हुई थी एक ख़ता खेल खेल में
फिर मैं असीर हो गया पैकर के जेल में
—मरातिब अख़्तर

(18.)
बिछड़ गए थे किसी रोज़ खेल खेल में हम
कि एक साथ नहीं चढ़ सके थे रेल में हम
—शोज़ेब काशिर

(19.)
आग से खेल खेल कर कितने जला लिए हैं हाथ
तुझ से कहा था बारहा देख ये बात छोड़ दे
—सज्जाद बाबर

(20.)
ये खेल ख़त्म करो इक़्तिदार का ये खेल
कि है क़रीब अजल के तिरा गला बाक़ी
—अहमद हमेश

(21.)
उस आँख से सीख राज़-ए-इस्मत
खुल खेल के पाक-बाज़ हो जा
—सलीम अहमद

(22.)
इक खेल था और खेल में सोचा भी नहीं था
जुड़ जाएगा मुझ से वो तमाशाई यहाँ तक
—शारिक़ कैफ़ी

(23.)
जिस ने दिया है ज़हर तुझे खेल खेल में
ऐसे सितम-ज़रीफ़ से तो फिर दवा न माँग
—टी एन राज़

(24.)
एक इक लम्हा कि एक एक सदी हो जैसे
ज़िंदगी खेल कोई खेल रही हो जैसे
—इक़बाल उमर

(25.)
किसे ख़बर थी कि ये वाक़िआ भी होना था
कि खेल खेल में इक हादसा भी होना था
—अज्ञात

(26.)
खेल ये कैसा खेल रही है दिल से तेरी मोहब्बत
इक पल की सरशारी दे और दिनों मलाल में रक्खे
—नोशी गिलानी

(27.)
चलो अब इश्क़ का ही खेल खेलें
इधर कुछ दिन से बेकारी बहुत है
—शोएब निज़ाम

(28.)
इक रोज़ खेल खेल में हम उस के हो गए
और फिर तमाम उम्र किसी के नहीं हुए
—विपुल कुमार

(29.)
कौन समझेगा उन की बात ‘शफ़ीक़’
आइनों की ज़बाँ है खेल नहीं
—शफ़ीक़ देहलवी

(30.)
बाँकी सज-धज आन अनूठी भोली सूरत शोख़-मिज़ाज
नज़रों में खुल खेल लगावट आँखों में शर्माना है
—नज़ीर अकबराबादी

(31.)
कोई खेल है जान पर खेल जाना
वो ये कह के अक्सर हमें तान्ते हैं
—हफ़ीज़ जौनपुरी

(साभार, संदर्भ: ‘कविताकोश’; ‘रेख़्ता’; ‘स्वर्गविभा’; ‘प्रतिलिपि’; ‘साहित्यकुंज’ आदि हिंदी वेबसाइट्स।)

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