खेल रहे अब लोग सब, सिर्फ स्वार्थ का खेल।
खेल रहे अब लोग सब, सिर्फ स्वार्थ का खेल।
रही न अब वो भावना, रहा न अब वो मेल।।
धन-दौलत-बल जोड़कर, खूब जमा लो धाक।
पल भर के सुखसाज ये, पल में होंगे खाक।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
खेल रहे अब लोग सब, सिर्फ स्वार्थ का खेल।
रही न अब वो भावना, रहा न अब वो मेल।।
धन-दौलत-बल जोड़कर, खूब जमा लो धाक।
पल भर के सुखसाज ये, पल में होंगे खाक।।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद