खेल दिवस पर विशेष
।।खेल दिवस पर विशेष।।
खेल में नहीं होता हैं कोई हिन्दू मुसलमान
खेल में नहीं होता हैं ऊँचा, नीचा, महान
खेल हैं सद्भावना मिल जाता हैं जिसमें सभी
खेल में बन जाता हैं इंसान बस इंसान
खेलनें वालों ने दुनियाँ एक कर दी खेलकर
खेल में रख दिया सब मन का गांठ खोलकर
मिटा दिया नफ़रत, बुराई, इंसान के दिमाग से
खेल ख़ुदा सा कर दिया संसार को सब एककर
खेलनें चलों सभी धर्म, ज्ञान छोड़कर
हिंसा, नफ़रत, बवाल की बात सब छोड़कर
जात, धर्म, मज़हब में संसार कुरुक्षेत्र हैं
ज़न्नत बनाने के लिए आ जाओ खिलाड़ी बनकर
भय, दुःख, शोक का एक खेल ही उपचार हैं
काम, क्रोध, रोग का खेल ही निदान हैं
मोक्ष, मुक्ति का ज़गह बस खेल का मैदान हैं
स्वस्थ तन और मन का खेल ही परिणाम हैं
खेल में विकार दूर होता हैं मन का सभी
खेल में विकास पूरा होता हैं तन का सभी
भाव, भावना, प्रेम जगाती हैं खेल ऐसी की
खेल के मैदान में मित्र होता हैं अपना सभी
खेल में सब एक हैं मतभेद भाव भूलकर
खेलतें मैदान में जैसे पानी में शक्कर घुलकर
भाव प्रेरणा जगाते हैं सब देखनें वालों की
तुम भी संसार में रहों इंसान सिर्फ बनकर
नही जीत हार ज़िंदगी खेल ने बता दिया
मिलकर गलें एक दूसरे से बाद में दिखा दिया
मैदान यदि संसार सब खेल का हो जाये तो
प्रेम एक मिलन की गंगा खेल ने बहा दिया ।।
©बिमल तिवारी “आत्मबोध”
(साद एरिश)
देवरिया उत्तर प्रदेश