खेती से लगे घाटे
लाचार हुआ बेबस, खेती से लगे घाटे
भूखे फिरत है बच्चे, टूटी पड़ी है खाटें
न सोते वो घरों मे, खेतो मे रात काटें।
दिल फूटफुट रोता ,चमचे बहुत से डाँटें।
खेतो मे खेती करके, बनिये के तलुये चाटें।
जिसने खाई न महेरी, तस्मै जी खीर चाटे।
हे “कृष्णा” हमे बचालो, क्यो हमसे दूर जाते
अब तुम बनो सहारा, हम तुमसे लगन लगाते
न ही दिन मे चैन उसको, नही कटती कभी रातें
कभी हँसके बात करता, कभी रो के कटे रातें
✍कृष्णकांत गुर्जर धनौरा