खूब उड़ रही तितलियां
** गीतिका **
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खूब उड़ रही तितलियां, हवा बह रही मंद।
और इकट्ठा कर रही, फूलों से मकरंद।
फूलों पर मंडरा रहे, देखो भँवरे खूब।
और उठाते जा रहे, जीवन का आनंद।
नैसर्गिक लगते बहुत, फूलों के सब रंग।
पंखुड़ियां खुलने लगी, कल तक थी जो बंद।
आज समय की मांग है, जागे हर इन्सान।
करे आवाज प्रकृति के, हित में सदा बुलंद।
कौन किसे अच्छा लगे, अलग सभी के शौक।
सहसा जो मन जीत ले, होती वही पसंद।
धरती नभ जल को सदा, रखें प्रदूषण मुक्त।
पुण्य धरा के साथ अब, खत्म करें हर द्वंद्व।
सबके मन को मोहती, फैली खूब सुगंध।
अधरों पर आने लगे, स्नेह भरे प्रिय छंद।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हिमाचल प्रदेश)