खूबसूरत पर्दे की आड़ ।
पर्दे की खूबसूरती अद्भुत,
आकर्षित करता खूब,
आँखों को दिखता कुछ और ही,
सच को रखता कैद भी,
जरुरी नहीं पर्दे के अंदर है जो,
चेहरा खूबसूरत हो वैसा ही,
बेपर्दा होने पर ही निखरता है ।
रंग के संग कई रंग उभरते है,
सुंदरता की आड़ में आँखों में पड़ता है पर्दा,
नकाबपोश वाले रंग खो जाने से डरते है,
कहीं बेरंग न हो जाए होकर हकीकत की चर्चा,
तभी कफ़न को कर दिया बेदाग उज्ज्वल ,
बड़े पैसों वालोंं ने पहन लिया पोशाक सफ़ेद,
पर्दे लगने लगे जब दफ्तरों के भीतर सटीक।
साज सज्जा भ्रम है आँखों में पड़ा पर्दा,
संसार को ढक रखा हकीकत के आवरण से,
पर्दे को हटा कर देख उस नई दुनिया को,
जहाँ त्याग कर ये काया पाना होता हकीकत को,
जीवन को खूबसूरत बनाया ओढ़ पर्दा की छाया,
पर्दाफाश होगा, उठेगा पर्दा गुनाहों से सभी के,
सच्चाई का पर्दा बिकेगा नहीं इस समाज में।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर (उoप्रo) ।