“ खून का रिश्ता “
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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अपनों को हम भुलें कैसे
अपने तो अपने होते हैं !
जबतक साँसों में साँस बसी
नाते -रिश्ते याद आते हैं !!
होता विभेद अपनों में कभी
कुछ क्षण मलिन हो जाते हैं !
फिर बातें समझ में आती है
हम एकदूजे को गले लगते हैं !!
हर हाल में माँ अपने बच्चों के
दुख -सुख की साथी रहती है !
उसके सुख में है चैन हमेशा
उन्हें दुख होने से रोती है !!
रिश्ते नाते ,अपने लोगों का
पाकर स्वर्ग बन जाता है !
मिलजुल कर साथ चलेंगे
पथ सुगम बन जाता है !!
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत
08.08.2022.