खूंरेजी दास्तान
सुबह लहूलुहान है!
रात भी पशेमान है!!
ख़ामोश है क्यों ज़मीन
चुप क्यों आसमान है!!
रख देती जो चीर कर
पत्थर का कलेजा भी!
आंसुओं से लिखी हुई
यह कैसी दास्तान है!!
सुबह लहूलुहान है!
रात भी पशेमान है!!
ख़ामोश है क्यों ज़मीन
चुप क्यों आसमान है!!
रख देती जो चीर कर
पत्थर का कलेजा भी!
आंसुओं से लिखी हुई
यह कैसी दास्तान है!!