खुशियों से दामन क्यूँ हमारा भर नही देता ! न जाने क्यूँ प्रभु हमको हमारा घर नही देता!!
खुशियों से दामन क्यूँ हमारा भर नही देता !
न जाने क्यूँ प्रभु हमको हमारा घर नही देता!!
कई जन्मो से मांगा है मगर अब भी तो है प्यासे!
तू अब भी क्यूँ प्याला हमारा भर नही देता!!
अमीरों के लिये ही क्या बनाया है ये दुनिया को!
अब तक क्यूँ ईश्वर तू मेरा उत्तर नही देता !!
कोई गद्दो पे सोकर भी तो नींदों को तरसता है !
हमे भी नींद आ जाये कोई बिस्तर नही देता !!
ज़माना जा रहा है चांदनी से चांद के पथ तक !
हमेभी आगे बड़ने का तू अवसर क्यूँ नही देता!!
“कृष्णा”साथ उनके हम ज़िये ये चाहते फिर भी !
हमे भी उनके लायक तू भला क्यूँ कर नही देता!!
-:कवि गोपाल पाठक:-(कृष्णा)