“खुशियों की सौगात “
( संस्मरण )
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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लोगों को कहते सुना था कि “ नो नोलेज विद आउट कॉलेज !” पाता नहीं यह कहाँ तक सत्य था ? पर मुझे यह बात मानने में थोड़ी सी हिचकिचाहट नहीं हो रही है कि ज्ञान- चक्षु का खुलना एक बरदान सिद्ध हो गया जब मैंने अपने कदम इस कॉलेज के दहलीज पर रखा ! प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल सिर्फ अपने सीमित कार्यकलापों में सिमट कर रह गया था ! स्कूल जाना ,पढ़ाई करना और मस्ती करना ही उद्देश रह गया था ! ना खेल के साधन थे ना मनोरंजन का तामझाम ! यही परिकल्पना घर कर गयी थी कि सारे के सारे शिक्षण संस्थान एक जैसे ही होंगे ! क्या स्कूल और क्या कॉलेज ? पर यह बात मेरी गल्त सिद्ध हुई जब सन 1968 में संथाल परगना महाविध्यालय ( S.P. COLLEGE,DUMKA) में दाखिला लिया !
खुला -खुला आकाश ,शांत वातावरण ,छोटी -छोटी पहाड़ियों से घिरा यह कॉलेज की अनुपम छटा देखने लायक थी ! बड़े -बड़े क्लास रूम ,अच्छी पुस्तकालय ,लंबा -चौड़ा खेल का मैदान ,सड़क के उस पार पश्चिम में कॉमन रूम ,एनसीसी कार्यालय ,NSC कार्यालय ,एथेलेटीक विभाग और बड़ा बगीचा को काफी करीब से देखकर मन आनंदित हो गया ! यह कॉलेज दुमका टाउन से 1.5 किलोमीटर था और मैं कॉलेज और टाउन के बीच में रहता था ! कॉलेज की घंटी मेरे घर तक सुनाई देती थी ! बस पैदल 4 मिनट का फासला !
उन दिनों दुमका में लोग पैदल ही चला करते थे ! निजी वाहन लोग रखते नहीं थे ! बस कुछ लोगों के पास साइकिल होती थी ! इस लिए जब कॉलेज का समय शाम को समाप्त होता था तो कॉलेज के प्राचार्य सुरेन्द्र नाथ झा पैदल ही दुमका शहर की ओर चल देते थे ! उनके पीछे -पीछे प्रोफेसरों की टोली और उनके पीछे छात्रों की पलटन ! दृश्य मनो जनपथ पर सैनिकों का मार्च पास हो रहा हो ! कॉलेज समय पर खुलना ,प्रोफेसर ,नॉन टीचिंग स्टाफ और सारे छात्रों की उपस्थिति अनिवार्य होती थी ! क्लास हो ना हो सारे प्रोफेसरों को अपने स्टाफ रूम में रहना पड़ता था !
लिजर पीरिएड में अधिकाशतः छात्र कॉलेज कॉमन रूम में अपना समय बिताते थे ! वहाँ पत्र- पत्रिकाएं,समाचार पत्र ,मेगज़ीन रखे रहते थे ! तरह -तरह के इनडोर गेम टेबल टेनिस ,कैरमबोर्ड ,प्लेइंग कार्ड्स ,शतरंज ,लूडो ,बेगाडोली इत्यादि वहाँ रहते थे ! मण्डल जी वहाँ के इनचार्ज होते थे ! मुझे यह सौभाग्य यहीं मिला ! मैं ने यहाँ तीन ही खेलों को पसंद किया ! पहला टेबल टेनिस ,दूसरा कैरमबोर्ड और तीसरा शतरंज मेरे प्रिय रहे !
लगन और मेहनत के बल पर मैं टेबल टेनिस अच्छा सीख गया और 1969,1970,1971 और 1972 में लगातार कॉलेज चैम्पीयन रहा ! 1971 में कैरमबोर्ड चैम्पीयन भी बना ! हमलोगों के साथ कॉलेज के प्रोफ़ेसर भी खेलते थे ! वे हर क्षण अपने विध्यार्थियों की सहायता करते थे ! कॉलेज के आलवे अपने घरों में जरूरत मंदों विध्यार्थियों को पढ़ते थे ! अपनी किताबें और नोट्स देते थे ! उस समय सारी पढ़ाई टेक्स्ट बुक से ही हुआ करती थी !
पर्सनैलिटी डेवलपमेंट की प्रक्रिया में यहाँ के प्रोफेसर रातनेश्वर मिश्र का योगदान उल्लेखनीय रहा ! उनके Sunday Study Circle ने हम लोगों की काया पलट दी ! भाषण ,ग्रुप डिस्कशन ,वादविवाद ,साक्षात्कार प्रक्रिया का प्रशिक्षण मिलने लगा ! नाटक और सांस्कृतिक कार्यक्रम होने लगे ! कॉलेज पत्रिका छपने लगी ! लेखन क्रिया पल्वित और पुष्पित होने लगी ! पढ़ाई के विभिन्य आयाम जुडते चले गए ! बांग्लादेश के शरणार्थियों की सेवा अन्तराष्ट्रिय विश्वविध्यालय मगध विश्वविध्यालय के तत्वाधान में 27 सितंबर 1971 से 15 ऑकटूबर 1971 तक कैम्प करके उनलोगों की सेवा की ! आने के बाद हम पुस्तकालय की ओर कदम बढ़ाते थे !
हमारे कॉलेज के सम्पन्न पुस्तकालय में सारी किताबें पायी जातीं थी ! गर्मियों की छुट्टी और कोई लंबी छुट्टी में पुस्तकालय खुला रहता था ! सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक हमलोग पढ़ते थे ! हमें बाजार से किताब खरीदने की जरूरत बिरले ही होती थी ! इन सारी सुविधाओं को पा कर कौन नहीं कहेगा कि “हमें खुशियों की सौगात “ नहीं मिली ! आज भी इसके प्रांगण में मैं जाता हूँ और मेरा सर झुक जाता है ! अभी भी उन अध्यापक गण को याद करते हैं और नमन करते हैं !
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस .पी .कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत
03.06.2022