खुशियों का तो महलों से याराना है…
झोपड़ियों के हिस्से में क्या आना है,
खुशियों का तो महलों से याराना है।।
संकीर्ण विचारों का है अब भी राज यहाँ,
मानवता तो केवल एक बहाना है।।
आग लगाई जिसने दिल की बस्ती में,
और न वो कोई, जाना-पहचाना है।।
आये भी सच बाहर तो कैसे आये,
अंदर-अंदर झूठ का ताना-बाना है।।
बेगानों सा उनका भी बर्ताव रहा,
रोज़ गली से जिनकी आना-जाना है।।
पहले के ही जैसे हैं हालात अभी,
प्यार-मुहब्बत का झूठा अफ़साना है।।
खेल सियासत का यूँ फैला चारों ओर,
“अश्क”लगे अब हर रिश्ता बेगाना है।।
©अश्क चिरैयाकोटी
दि०:13/02/2022