खुशियाँ ही अपनी हैं
हर व्यक्ति ही चाहता दिल में,खुशियां ही खुशियां हों जीवन में।
कैसे आयें बहुत सी खुशियां, हमारे इस नन्हें मुन्ने से जीवन में।।
संपत्ति और समृद्धि के पीछे क्यों,भागे हरेक कोई जीवन में।
अपना ही अपने को लूट रहा क्यों,अपनों से मिलकर जीवन में।।
इंसानियत है द्वार खुशियों का,क्यों हम इसको छोड़ रहे हैं।
आँख मींच के संबंध तोड़ के,संपत्ति के पीछे ही दौड़ रहे हैं।।
जीवन में दुःख सुख ही हैं केवल,जिन पर अधिकार हमारा है।
इसके सिवा और कुछ भी नहीं,जिसे कह सकें कि ये हमारा है।।
खुशियाँ बांटने की खातिर भी,अपनों की जरूरत पड़ती है।
अपने साथ खड़े हों दुःख में तो,दुनिया हंस के दुःख सह सकती है।।
दोस्तों और अपनों की परख भी, दुःख में ही हो सकती है।
किन्तु खुशियाँ ही हैं जो इस जग में,दुश्मन संग भी बंट सकती हैं।।
कहे विजय बिजनौरी खुशियों में, सारा जगत ही अपना लगता है।
परेशानी को देख तुम्हारी क्यों,अपना भी सबसे पहले भगता है।।
विजय कुमार अग्रवाल
विजय बिजनौरी