खुशनुमा – खुशनुमा सी लग रही है ज़मीं
खुशनुमा – खुशनुमा सी लग रही है ज़मीं
खुशनुमा – खुशनुमा सा लग रहा है आसमां
चारों तरफ फूल खिलखिलाने लगे हैं
पंक्षी भी मधुर स्वर में गुनगुनाने लगे हैं
खिली – खिली सी लग रही है फिज़ां
आसमां भी मंद – मंद पवन बहाने लगे हैं
पूछते हैं हाल मेरा वो क्यों कर
क्या वो मुझ पर तरस खाने लगे हैं
किनारा कर जो खुश हुए मुझसे
वो आज मुझ पर प्यार क्यों लुटाने लगे हैं
गली में उनकी हमने जाना छोड़ दिया
वो क्यों मेरी गली के चक्कर लगाने लगे हैं
दौलत से कभी हमने मुहब्बत थी ही नहीं
वो आज हम पर अपनी दौलत क्यों लुटाने लगे
जीने मरने की कसमें खाया करते थे वो
आज वो दूसरों का घर क्यों बसाने लगे
खुशनुमा – खुशनुमा सी लग रही है ज़मीं
खुशनुमा – खुशनुमा सा लग रहा है आसमां
चारों तरफ फूल खिलखिलाने लगे हैं
पंक्षी भी मधुर स्वर में गुनगुनाने लगे हैं ||
अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”