खुल कर जी ले
माटी का
पुतला है एक
तू कोई
देवता नहीं
जी सके तो
जी ले आज
कल का
कुछ पता नहीं…
अपनों से
खौफ और
बेगानों से
शर्म क्या
प्यार से जो
दूर करे
लानत है वो
धर्म क्या
होती है एक
भूल सबसे
यह तेरी
बस खता नहीं…
दुश्मनी क्या
की जाए
चार दिन के
मेहमान से
जिस्म मिले
जिस्म से
और जान मिले
जान से
तकाज़ा है
यह उम्र का
इसमें तो
कुछ बुरा नहीं…
दुनिया ही
यह फानी है
चाल वक़्त की
तूफ़ानी है
बालू पर
लिखी गई
मेरी-तेरी
कहानी है
मौत के
चंगूल से
अब तक कोई
बचा नहीं…
#Geetkar
Shekhar Chandra Mitra