खुला बाजार दुकानें हजार
खुला है
बाजार
दुकानें हैं
हजार
कहीं है
मेहनतकश
कहीं है
बदमाश
सजी है
दुकान
बैठी वो
सज-धज के
रहना था
उसे इज्जत से
हो रही
यहाँ वो
बेइज्जत
जमाने में
चलाओ मत
दुकान
तोड़ फोड़ की
करो मत गुमराह
देशवासियों को
दो संदेशा
एकता देशभक्ति
मानवता का
बेचने को तो
है बहुत कुछ
” संतोष ”
दुकान में
छल फरेव
की आड़ में
लूटो मत
इन्सानियत को
दो इतना
अपनों को
याद हमेशा
रहे साथ
जाऐगा साथ
कुछ नहीं
सब यहीं
रह जाएगा
खोलोगे
गर दुकान
ईमान की
मौला साथ
ले जाएगा
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल