खुला था दिल का दरवाजा
खुला था दिल का दरवाजा
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खुला था दिल का दरवाजा,
और दिल की खिडकी भी।
चुपके से वो करीब आकर ,
ऊतरा दिल के भीतर भी।
करू मै क्या बेबस हो गई
सूझ रहा न कोई उपाय भी।
तन को छू कर मन को टटोला,
और छू गया मेरी सांसे भी।
उसके आने से फिर महके ,
घर के हर कोने कोने भी।
खुला था दिल का दरवाजा,
और दिल की खिड़की भी।
रास रचाके होश गवांके,
छेड गया मन की तारे भी।
ले गया वह सब कुछ मेरा,
बचा नही कुछ बाकी भी।
खुला था दिल का दरवाजा,
और दिल की खिडकी भी।
आज सजी मै और संवरी,
और बन बैठी बांवरी भी।
रंग हुआ चहेरे का गुलाबी,
अब नही रही सांवली भी।
बन के तितली मस्त पवन मे,
उड रही मै बनके दिवानी भी
खुला था दिल का दरवाजा ,
और दिल की खिडकी भी
आर के रस्तोगी गुरुग्राम