खुला आसमान चाहिए
खुला आसमान चाहिए
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चन्द ज़मीं का टुकड़ा नहीं मुझे पूरा जहान चाहिए,
मैं बेख़ौफ़ परिंदा हूँ मुझको खुला आसमान चाहिए !!
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कोई बने मालिक हवेलियों के, महलों में राज करे,
मुझे तो बस आपके दिलो में, थोड़ा स्थान चाहिए !!
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कोई लगाए इत्र, कोई मखमल के गद्दों पे नाज़ करे,
चाह नहीं इनकी, मुझे, गुलिस्ताँ में पहचान चाहिए !!
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होंगे राजे-रजवाड़े, मीर, शहज़ादे, घोड़े-हाथी, बंगले-गाडी,
ये सब मेरे किस काम के, मुझे, आपकी दुआओं का इनाम चाहिए !!
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चल निकला हूँ सफ़र-ऐ-जिंदगी पर उड़ते परिंदे की तरह,
रोके न रुकेगा “धर्म”, बस नज़र -ऐ-इनायत इंसान चाहिए !!
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डी के निवातिया