खुर्पेची
गोरखपुर रेलवे स्टेशन से मुम्बई को जाने वाली ट्रेन खुली सारे यात्री अपनी अपनी सीटों पर बैठे थे कुछ यात्री अपना रिर्जवेशन मोबाइल से देखकर या कुछ हाथ मे टिकट लेकर लिए अपनी अपनी सीट खोज रहे थे ।
ट्रेन अपनी रफ्तार से चलती जाती निर्धारित स्टेशनों पर रुकती यात्री चढ़ते उतरते च ढ़ ते जाते इतने में गोंडा जंक्शन पर ट्रेन रुकी कोच संख्या बी 5 में एक यात्री अपने टिकट से अपनी सीट खोजता चढ़ा ।
उसका सीट नम्बर था बी 7 जिस पर पहले से एक यात्री बैठे थे जो देखने से बहुत विनम्र और अभिजात्य वर्ग से लग रहे थे।
गोंडा में चढ़ा यात्री पहले से सीट पर बैठे यात्री से बोला जनाब बी 7 तो मेरी सीट है इस पर आप कैसे बैठे है? पहले से बैठे यात्री ने कहा देखिये भाई साहब मैंने भी टिकट ले रखा है और मेरे भी टिकट पर बी 7 ही लिखा है और मेरा भी कोच नंबर बी 5 ही है।
गोण्डा से चढ़े यात्री ने बड़े कठोर लहजे में कहा आप जानते नही है मैं कौन हूँ बड़े बड़े मुझे देख कर अपनी कुर्सी सीट छोड़ देते है मेरा नाम जनरैल सिंह खुरपेंची है आप किस खेत की मूली है उठिए मेरी सीट से ।
पहले से बैठे यात्री महोदय बोले सही कह रहे है मैं आपको नही जानता ,जानता तो आपकी शान में इतनी बड़ी गुस्ताखी कैसे कर सकता था कि आपकी सीट पर बैठ जाता मेरी इतनी जरूरत कहाँ लेकिन क्या करे भाई साहब मेरा भी सीट नंबर बी 5 कोच में सीट संख्या बी 7 ही है ।
खुर्पेंची महोदय ने कहा यह कैसे हो सकता है मैं अभी रेल मंत्रालय एव बोर्ड को तलब करता हूँ पहले से बैठे यात्री ने कहा महोदय आप रेलवे बोर्ड एव मंत्रालय से बात कर समाधान निकलवा लीजिये हमारा भी भला हो जाएगा मेरी भी असली सीट का पता चल जाएगा और हम दोनों के बीच सीट विवाद ही समाप्त हो जायेगा।
जब तक आपकी बात रेल मंत्रालय एव रेलवे बोर्ड से हो रही है तब तक मैं यही बैठा हूँ जब स्प्ष्ट हो जाये तब बताइएगा जहाँ मेरी सीट होगी चला जाऊंगा ।
खूर्पेंची बोला तुम्हे मालूम नही की यह ए सी थर्ड है आप जैसे लोंगो के लिए नही है पहले से बैठे यात्री ने अपनी शालीनता विनम्रता का परिचय देते हुए बोले देखिए भाई साहब मैं आपको इतनी इज़्ज़त देते हुए बात कर रहा हूँ और आप तुम तडांम पर उतर आए ।
खुर्पेची बोला तुम जैसे आदमी की हैसियत ही क्या ?
दोनों यात्रियों की नोक झोंक बढ़ते देख कोच के अन्य यात्रियों ने एक सुगम रास्ता सुझाया की आप दोनों ही बिना किसी विवाद के बैठे रहे जब कोच कंडक्टर आएंगे तो वही बता देंगे कि यह सीट किसकी है ।
लेकिन खुरपेची ने जैसे कसम ही खा रखी थी वह नहीं मानेगा कोच के अन्य यात्रियों के मध्यस्थता के बाद भी कोई समाधान नही निकला तो सारे यात्री पुनः अपनी अपनी सीट पर जाकर बैठ गए।
विवाद थमने का नाम ही नही ले रहा था तब पहले से बैठे यात्री महोदय ने क्रोधित होते हुए कहा ए मिस्टर जब से कोच में चढ़े हो #अपने मुंह मियां मिठ्ठू बनते # जा रहे हो तभी से मेरे साथ सभी लोग समझाने की कोशिश करते जा रहे है मान ही नही रहे हो समझ क्या रखा है?
तुमने अपने आपको बार बार तुम यही कहते जा रहे हो कि तुम कौन हो कोई जानता ही नही बता तो रहे हो तभी से अपने आचरण से सभी को कि तुम क्या हो सकते हो ?
क्या कह रहे थे कि यह ए सी कोच है तुम लगता है पहली बार ए सी कोच में बैठने जा रहे हो तुम्हे लग रहा है तुम बहुत बड़े आदमी हो वास्तव में तुम परले दर्जे के लोफर और निकृष्ट आदमी हो बाज नही आ रहे हो #अपने मुंह मियां मिठ्ठू बनने से#
मैं तुम्हे बताता हूँ कि मैं कौन हूँ और बी 7 सीट पर पहले से बैठे यात्री ने अपने पॉकेट से मोबाइल निकाला कहां फोन किया पता नही ट्रेन सफेदा बाद स्टॉपेज ना होते हुए भी रुक गयी और मजिस्ट्रेट समेत पूरा टिकट कलेक्टर का गैंग दौड़ते भागते बी 5 कोच में आया।
पहले से बैठे यात्री को बड़े अदब से सलाम ठोकते हुये बोला कौन है साहब ?जिसने आपको परेशान करने की जरूरत की है गोंडा से चढे यात्री को खुरपेचि सर्दी की रात में पसीने से तर बतर हो गया उसके हलक में ही आवाज अटक गई वह कुछ भी बोल सकने की स्थिति में था ही नही ।
टिकट कलेक्टर के दल ने उसका टिकट देखा वह वास्तव में कोच नंबर 7 के बर्थ नंबर 7 था जो वह समझ नही पा रहा था टिकट कंडक्टर दल के साथ आये मजिस्ट्रेट भी कोच में चढ़ गए थे उन्होंने खूर्पेची से बड़े कठोर लहजे में कहा कि मिस्टर आप शराब के नशे में धुत है वह भी अपने घटिया शराब पी रखी है और ट्रेन में उधम मचा रहे है बवाल काटा रहे है मैं आपके चालान का आदेश देता हूँ ।
अब तुम बायकायदा जमानत करा कर एक आध महीने बाद मुंबई जाना वैसे तुम करते क्या हो हकलाते हुये वह बोल पाया सर मैं मुम्बई में कांस्ट्रक्शन कम्पनी में सुपवाइज हूँ ।
घर पर बहुत आवश्यक कार्य से गया था कम्पनी ने ही आने जाने के टिकट का बंदोबस्त किया था रेलवे मजिस्ट्रेट बोले जो भी हो जायेगा तुम्हे सजा तो भुगतनी ही होगी या तुम्हे राजदान साहब चाहे तो माफी दे सकते है मैं तो तुम्हे कोर्ट में ही जमानत पर छोड़ सकता हूँ क्योकि तुमने अछम्य अपराध किया है अब बेचारा दींन हीन ऐसा लग रहा था जैसे शेर गिरगिट हो गया हो ।
खूरपेची मजिस्ट्रेट के पैरों पर गिर पड़ा और गिड़गिड़ाने लगा मजिस्ट्रेट साहब बोले क्यो औकात ठिकाने इतनी जल्दी कैसे आ गयी कुछ देर पहले तो तुम #अपने मुंह मिया मिठ्ठू बनते # बहुत हेकड़ी दिखा रहे थे क्या हुआ ?
खूरपेंची कि आंखों से आंसू बहने लगा जैसे उसका नशा काफूर हो चुका था और बेबस लाचार हो कर बोला सर यदि मैं समय से नही पहुंचा तो मेरी नौकरी चली जायेगी ।
मजिस्ट्रेट साहब बोले कि राजदान साहब ही आपकी किस्मत बना या बिगाड़ सकते है हम तो मजबूर है ट्रेन चल चुकी थी कोच के सारे यात्री एक बार फिर मजिस्ट्रेट साहब के आस पास आकर एकत्र होकर सारा माजरा देख रहे थे खुर्पेचि की स्थिति देख कर यात्रियों ने एक स्वर में कहा आप माफी के काबिल तो नही है आपने हरकत ही ऐसी की है लेकिन आपकी रोजी रोटी का सवाल है तो मजिस्ट्रेट साहब आप इनको माफ कर दे हम सभी इनकी गुस्ताखी के लिए माफी मांगते है ।
मजिस्ट्रेट साहब ने कहा कि मैं कुछ भी नही कर सकता जो कुछ कर सकते है राजदान साहब ही कर सकते है सारे यात्रियों ने राज दानसाहब से बड़े विनम्रता पूर्वक निवेदन किया राजदान साहब ने कहा सिर्फ एक शर्त पर इन्हें माफ किया जा सकता है ये आश्वासन दे कि किसी के साथ ये ऐसा व्यवहार नही करेंगे भविष्य में डूबते को क्या चाहिए तिनके का सहारा तुरंत उन्होंने अपना कान पकड़ते हुये आत्मग्लानि के साथ जैसे प्रश्ची त किया ।
राजदान साहब ने मजिस्ट्रेट मुकुन्द माणिक से कहा जाने दीजिये साहब माफ कर दीजिये इसे अपनी गलती का एहसास हो चुका है ।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।