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17 May 2017 · 1 min read

खुद से मिलने की दिल में हसरत है

खुद से मिलने की दिल में हसरत है
पर मिली आज तक न फुरसत है

पूजा जाये भले ही धन कितना
अच्छी सेहत जहां में नेमत है

शर्म आंखों की मर गई ऐसी
अब सरे आम लुटती इज्जत है

दौर चलता बराबरी का अब
पहले जैसी नहीं मुहब्बत है

साँझ जीवन की आ गई देखो
रहती नासाज सी तबीयत है

सर चढ़ी बेइमानी है सबके
रूठी रूठी लगे शराफत है

ये सफलता भी हमको तब मिलती
साथ जब देती अपनी किस्मत है

हैं चढ़ी कितनी परतें चेहरे पर
“अर्चना’फिर भी फीकी रंगत है

डॉ अर्चना गुप्ता

1 Like · 298 Views
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