खुद को तुम पहचानो नारी [भाग २]
सुनो नारी, सुनो नारी!
सुनो एक पैगाम।
परम्परा के नाम पर
न दो खुद का बलिदान ।
जो परम्परा तेरे पैरो को बाँधे,
वह बेड़ियाँ अब खोल दो।
जो तुम्हें उड़ने से रोके,
वह जंजीरे अब तोड़ दो।
भर उड़ान आसमान मेें तू,
जा आसमान नापकर आ।
दिखा दे दुनियाँ को एकबार
तू क्या -क्या कर सकती है।
तुम रख अपने अन्दर
करुणा दया और ममता
इसमें कुछ भी गलत नहीं है।
पर अपने पर होने वाले
शोषण के विरूद्ध तुम
आवाज न उठाओ।
यह बिल्कुल सही नही है।
तुम कब तक अपने इच्छा
को मारकर सपनो को दफनाओगी ।
कब तुम घूँघट और घर से
बाहर आ पाओगी।
तेरा वह घर है,
सम्भाल कर रखती हो अच्छी बात है।
पर यह सपने और इच्छा भी तो तेरा ही है।
इसे भी तो पूरा कर, जो तुम्हें पुरा करेगी।
भुल जा की तुम्हें कौन क्या कहता है।
मत सोच कि तुमसे होगा या नही।
सबसे पहले खुद पर विजय कर,
तुम करने की ठान तो सही।
देख तुम कैसे नामुमकिन
को भी मुमकिन बनाती हो।
कैसे तुम घर और बाहर
सुन्दर ढंग से सम्भालती हो।
अपनी क्षमता का परिचय
खुद से कराओ तो सही,
देखो एक पल में ही तुम कैसे,
धरती और आकाश
दोनो को नाप सकती हो।
अपने क्षमता से तुम हर
बुलन्दियों पर पहुँच सकती हो।
~अनामिका