{{{ खुद को आँचल में छुपाती }}}
ऐसा नही था कि उसने महसूस न किया हो
पीछे से घूरती सख्त आँखों को,
उसने कई दफा महसूस किया था, कैसे नही करती
कभी-कभी सोचती हूँ , खुद से सवाल भी करती हूँ … ईश्वर ने छठी इन्द्री देकर कही हम महिलाओं के साथ अन्याय तो नही कर गया क्योंकि ..
ये इन्द्री का एहसास ही था जो उसकी स्मिता को अंधेरे में डराती
कुछ अन्यथा न हो जाए इस लिए खुद को आँचल में छुपाती
कहाँ सुरक्षित हूँ मैं हर जगह दानव का डेरा हैं…. यही सवाल मन ही मन दोहराती
ना कोई शोर था ना कोई हल्ला
ये कैसी विछिप्त सी हालात थी
शरीर पे लगते ज़ख्म तो वो दिखा भी देती
आत्मा पे लगे ज़ख्म कैसे किसी को दिखाती
मन को जो खरोंचा था किसी ने.. दिमाग पे करते हथोड़े से चोट
हर पल उसे पागलपन के करीब ले कर जाती
अपने दिमाग की मानसिक व्यथा कैसे किसी को समझती
साँस अगर रुक रही होती तो दवा से पुनः श्वास भी भर देते
अंतरात्मा जो उसकी मर रही ,,उसके लिए संजीविनी कहा से लाती
ये कैसा समाज हैं ,,ये कैसा अधिकार है
जिस पुरुष जो जन्म दे , उंगली पकड़
चलना सिखाती
वही सरे बाजार उसके दामन को खींच उसपे उंगलीया उठती
कब तक हम औरतों को सिर्फ मांस का टुकड़ा समझा जाएगा
है हममे भी स्वछंदता से ज़ीने का अधिकार
क्यों समाज इसे नही स्वीकारती
हैं अगर कानून में शारीरिक बलात्कार की सज़ा तो
मानसिक बलात्कार की सज़ा कानून क्यों नही बनाती
जब नही मिलती इज़्ज़त की चुनरी उन्हें तो
कफ़न की चादर को ओढ़ना ज्यादा महफूज समझती ….