खुदा तो नहीं देखा पर एहसास मिलता रहा है
खुदा तो नहीं देखा पर एहसास मिलता रहा है
पिता बन के मेरे साथ हमेशा चलता रहा है
न दिखा सके किसी रात में ख़ौफ़ अंधेरे मुझको
एक शख़्स दीया बन के हर पल जलता रहा है
अपनी तमाम हसरतों का क़त्ल किया उसने मगर
लेकर मुझे इक़ ख़्वाब आँखों में पलता रहा है
लड़खड़ाते कदमों को वो ताक़त संभालती रही
साया बन के मिरे साथ पल पल चलता रहा है
मुश्किलों से लड़ता रहा वो अंदर ही घुलता रहा
मेरे लिए लेकिन मुस्कान भरा चेहरा रहा है
ना शिकन ज़बीन पर कभी वो हौसला देखा मैंने
बन रहनुमा मेरे चाक गरेबां सिलता रहा है
बस ज़िंदगी वही थी जो तेरी छाया में जी ली
बाद-ए-ज़िंदगी दिल-ए-सरु धूप में जलता रहा है