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1 Nov 2020 · 1 min read

खुदा की अमानत…

समंदर कहां तक, हमें अब उछाले
नहीं कोई तिनका जो आकर बचा ले

मुझे कर दिया तीरगी के हवाले
मुबारक हो तुमको यह सारे उजाले

नहीं जिंदगी पर कोई जोर अपना
खुदा की अमानत कभी भी बुला ले

मिलें चार कांधे, घड़ी आखिरी हो
तअल्लुक ज़माने से इतना बना ले

यही आरजू है अभी तक अधूरी
कभी रूठ जाऊं मुझे वह मना ले

यह दुनिया बहुत खूबसूरत लगेगी
निगाहें जो खुद के गिरेबां पे डाले

पतंगे यहां प्यार की कम नहीं है
कभी मैं उड़ा लूं, कभी तू उड़ा ले

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