…..*खुदसे जंग लढने लगा हूं*……
…..*खुदसे जंग लढने लगा हूं*……
मैं आज कल खुदसे जंग लड़ने लगा हूं, मैं कितना काबिल हू इसी कोशिश में खुदको आजमाने लगा हूं,
काँच जैसा चमकने के लिये,
बिखरने लगा,
चाँद जैसा निखरने केलीये,
आजकल मैं खुदसे लड़़ने लगा हूं। कामियाबी हासिल करने के लिये नहीं तो सिर्फ ममता की छाँव को गर्व महसूस कराने के लिये,
मै लोगो से नही खुद से लड़ रहा हूं इम्हितिहां का शिखर खुद ही पार कर रहा हूं
आजकल जरा बदलने लगा हूं,
सुरज सा तेज,
दूर सबसे’ रहने लगा हूं
मैं खुदको समझाते समझाते,
खुदको ही कोसने लगा हूं।।
चंद लम्हो से की बातो से ,
जुदा होने लगा हूं !
अपनी जान से फासले तय करने लगा हूं
जिंदगी को नये ढंग से जीने के लिये खुद को भूलने लगा हूं
एक काबिल इंसान बनने की कोशिश में,
खुदकी परछाई से डरने लगा हूं !
खुद को समझाते समझाते,
आग का गोला बनके फटने लगा हूँ
तो कभी बर्फ बनके पिघलने लगा हूं ,
मैं बस खुदसे लड़ने लगा हूं ।।
Naushaba Jilani Suriya