खींच मत अपनी ओर…..
खींच मत अपनी ओर अतीत।
साथ हमारा गया अब बीत।
माना तू सुहाना बहुत है।
पर अब मुझसे दूर बहुत है।
आकर्षण में बँध मैं आती,
दिखता तुझमें नूर बहुत है।
गुजरी तेरे साथ मौज से,
जिंदगी हसीं गयी वो बीत।
खींच मत ….
तेरा – मेरा नाता टूटा।
मैं आगे तू पीछे छूटा।
वर्तमान से मिल कर रहना,
उसकी हाँ में हाँ अब कहना।
दुनिया चले वक्त की शै पर,
वक्त से कोई सका न जीत।
खींच मत ….
काश ! कभी पीछे आ पाती।
ख्वाब सभी पूरे कर जाती।
हड़बड़ी में हाथ से छूटी,
खुशी साथ अपने ले जाती।
गीत मेरे सुर – ताल पे तेरी,
रचते मिल मधुमय संगीत।
खींच मत ….
वे दिन भी क्या सुंदर दिन थे।
ख्वाब नयन में जब अनगिन थे।
गमों का था न पता – ठिकाना,
कितने मौज भरे पल-छिन थे।
भूली नहीं आज भी दिन वो,
मिला था जब मुझको मनमीत।
खींच मत ….
भरसक तूने साथ निभाया।
पर किस्मत को रास न आया।
आज उदासी के आलम में,
याद तुझे कर जीवन पाया।
यूँ ही निज कोटर में साथी,
रखना छुपाए मेरी प्रीत।
खींच मत अपनी ओर अतीत !
-डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)
“मनके मेरे मन के” से