‘खिदमत’
अश्क किसी के आँखों में देखो अगर,
पोंछ लेना उन्हें तुम अपना समझकर।
पेट खाली कभी कोई दिख जाए राह में,
तो कभी दो निवाले खिला देना अपना समझकर।
हर जिस्म में होता है खुदा का ही घर है,
कर रूह की खिदमत अपना समझकर।
प्यासे को पानी और ग़रीबों चादर,
हमेशा उड़ाना तुम लाचार समझकर।
खिदमत कभी भी जाया नहीं होती,
कर मोहब्बत हर इंसा से परवरदिगार समझकर।
-Gn