खिड़की पर किसने बांधा है तोहफा
चिड़िया जब आ बैठी तोहफे पर
झंकार हुई धातु के बने दिलों से ।
देखा झट से मैंने मुड़ कर ऐसे ही
इंतज़ार था मानो मुझे कई दिनों से।
उछल पड़ी मैं देख तोहफा हसीं।
न आया था मुझे ,कुछ पल यकीं।
याद करता हैं वो मुझे अभी भी
सामने हो तो चूम लूं,उसकी जबीं।
ये तोहफे ही ,बन जाते हैं यादगारें।
हसीन यादों से ही हैं जीवन में बहारें।
सुरिंदर कौर