खिड़की खुले जो तेरे आशियाने की तुझे मेरा दीदार हो जाए,
खिड़की खुले जो तेरे आशियाने की तुझे मेरा दीदार हो जाए,
मैं ही दिखूँ दिन रात तुझे इसकदर मुझसे प्यार हो जाए,
मेरे मुस्कुराये बगैर ना हो सुबह तेरी ना हो मेरी बातों के बिना शाम,
कभी ना उतरे सर से तेरे तुझ पर ऐसा प्रेमभूत सवार हो जाए,
अपनी जान समझकर हरदम करे तू हिफाज़त मेरी,
चाहे कितने भी मेरे दुश्मन बार बार हो जाए,
बेइंतेहाँ प्यार हो दिल में हरकतों मे सराफत हो तेरे,
सिर चढ़ के बोले इश्क़ इतना बेशुमार हो जाए,
कभी ना होने दे तू मुझे अपनी नज़रों से ओझल,
ज़रा मैं दूर जाऊँ तो दिल तेरा बेकरार हो जाए,
खामोश मुझे देखकर तू मेरे पास बैठे बातें सुने मेरी,
दूर करे नाराज़गी ऐसी की सारी हदें हद से पार हो जाए,
हाथ थामे तू मेरा सारी उम्र साथ निभाने को,
मिलुँ मैं जिस पल तुझे वो पल तेरा त्योहार हो जाए।
✍️वैष्णवी गुप्ता (Vaishu)
कौशांबी