खिड़की के बंद होने से पूर्व—–
खिड़की से भीतर उतरती है
सिली इच्छाओं की उधड़न
जिसे छुपाने के लिए
स्वप्न के सीने से लग जाती हैं
पेड़ों पर टंगी अधपकी संभावनाएं ।
खिड़की के भीतर चला आता है
एक स्पर्श
जिसको पाने की तरस
और खोने का भय
उतना ही रूंधा है
जितनी कि मेरी चुप्पी में ठहरा
एकांत !
खिड़की के भीतर
हवा ,पत्ते, रजकण और कभी-कभी फूल
आ गिरते हैं
अपना स्थान बनाने के लिए
जबकि बिन बुलाए तो
नकारे जाते हैं सदा ।
खिड़की से बाहर बहता रहता है
प्रतीक्षा का जल
दृष्टि की विस्तृता
नायाब स्मृतियां
अल्पायु अनुभूतियां भी ।
ना कह पाने के उलहाने
हृदय की खरोंचे
और उसमें समाहित
शब्दों की उफनती नदी ।
इस खिड़की में भर लेना चाहती हूँ
स्पर्श की अनुभूति
जो सांसों के शोर में
दब न सके
एक अमर कविता—
जो व्याखित ना की जा सके
एक साथ का सुकून—-
जो जीवन में अर्थ भर सके
इस खिड़की से भर लेना चाहती हूँ —
इस खिड़की के बंद होने से पूर्व !!