खिड़कियाँ..।।।।
खिड़कियाँ..
जाने कितने एहसासों के रंग मे,
हर क्षण रंगती रहीं “खिड़कियाँ
संग पलकों के मेरे ही खुलती.,
और बंद होती रहीं “खिड़कियाँ”
इक झलक दिखलाने को उसकी,
हरपल बुलाती रही “खिड़कियाँ”
कई कई पहर इंतज़ार मेे उसके,
पास बिठाती रहीे “खिड़कियाँ ”
मेरे मन के सूनेपन को हरदम,
दूर भगाती रहीं “खिरकियाँ ”
कुछ कहे बिना हीं हर बात ,
मुझे समझाती रही “खिड़कियाँ”
हर टूटते उम्मीदो पर साथ मेरे,
आँसू बहाती रही ” खिड़कियाँ ”
उम्मीदों की कई किरणें फिर भी,
मन मे जगाती रहींं “खिड़किया ”
मेरे टूटे अरमानो का वक्त बे वक्त,
सेज सजाती रही “खिड़कियाँ ”
यादों के सफर मे मेरी हरदम,
बनी मौन साथी रहीं “खिड़कियराँ ”
वक्त के दीवारों पर मै अक्सर ,
लकीरों से बनाती रही “खिड़कियाँ ”
पर हर खिड़कियों मे तस्वीर “सुदामा”,
मुझे तेरी दिखाती रहीं “खिड़कियाँ ”
विनोद सिन्हा-“सुदामा”