खाली हाथ
निकले थे ,जहां में कुछ पाने के लिए, ये क्या
हम खाली हाथ ही चले आए।
इसका भी अपना, अलग ही किस्सा है जो ,
शब्दों में बयां ना हो पाए।
कुछ चाह थी कुछ कर गुजर जाने की , ये क्या
हम चाह कर भी, ना कुछ कर पाए
कहते हैं दुनिया में ,जो चाहो वह मिलता है ये क्या
हम तो, गैरों की ही चाह हो पाए।
ये वक्त की बातें हैं ,जनाब, ना
हम समझ पाए, ना तुम ही समझ पाए।
जहां, तो बाजार है, उन लोगों का जो,
ना खुद ही जी पाए ना ही जीने दे पाए।
कहते हैं, दुनिया के छोर का कोई अंत नहीं, पर
यहां तो दुनिया चार कोनों में ही समा जाए।
दुनिया बहुत रंगीन है, हंसो गाओ ,कैसे?
दुनिया का तो, रंग ही समझ ना आए।
दो आत्माएं पवित्र बंधन से, हमराही बनी पर!
हमराही होने के, उनमें गुण नजर ना आए।
यही वह किस्सा है, कि हम जहां से,
खाली हाथ क्यों चले आए ,खाली हाथ क्यों चले आए
खाली हाथ क्यों चले आए………