खाली पैसों के बदौलत ही ब्यवहार नहीं चलता.
एक दो बार सही हर बार इनकार नहीं चलता.
इस कमर तोड़ महंगाई में उधार नहीं चलता.
माना की बहूत फ़िक्र है तुझे अपनों के वास्ते,
पर महज फ़िक्र से ही, घर-परिवार नहीं चलता.
कभी धुप,कभी छाव,कभी बदली,कभी बारिश,
सदा एक जैसा मौसम का किरदार नहीं चलता.
छोड़ दे इरादा तू कातिल बनने का ज़माने में,
दिल में दया हो तो हाथो से तलवार नही चलता.
हरदम मत तौलो रिश्तों को दौलत की तराजू में,
खाली पैसों के बदौलत ही ब्यवहार नहीं चलता.
“नूरैन” सब कुछ पूछ मत ये पूछ,हाले-बिजिनस मेरी,
अन्धो के शहर में आईने का कारोबार नहीं चलता.
@ नूरैन अन्सारी