खालीपन
मन के उदास कोने में
खालीपन की छटपटाहट
अपनों की भीड़ के बीच भी,
अकेला कर देती है।
ऐसा तब महसूस होता है
जब हम खुद को पूर्ण नहीं पाते!
पूर्णता के लिए भाव जरूरी है।
लेकिन मन में भाव ही नहीं होते!
सब खाली खाली सा लगता है!
अंदर ही अंदर कचोटता है,
खुद को खुद तक जाने से रोकता है।
जाने क्यों रोकता है?
ये मन के अंदर जो रिक्त है ना?
ये हर समय,हर व्यक्ति से
बात करने या मिलने पर
ढूंढता सा रहता है,
कि कुछ……
हां कुछ तो है!
जिसकी तलाश है।
ये मन को भी नहीं पता,
लेकिन खुद से कहता है
कि जब वो उससे मिलेगा
तो उसे खोज ही लेगा।
और इस खोज के सफर का
कभी अंत नहीं होता।
यानि ये सफर अक्सर
एक अंतहीन यात्रा पर होता है।
और लंबे समय बाद धीरे- धीरे
हम आदी हो जाते हैं,
इस अंतहीन यात्रा से उपजे
खालीपन के…!
फिर ये खालीपन भरता भी है.,
तो इस पूर्णता का अहसास
मन को सुहाता ही नहीं!
हां! बिलकुल नहीं सुहाता।