” खामोश आंसू “
शब्द की जुबान अब
आँखों की कोर कोर कहें…।
हर मौसम हर पल
दर्द हजार क्यों वो सहें…।।
रोशनी हो या हो अंधेरा
दिन दिन रात रात बहें…।
सुख सुख कर फिर से भरें
फिर भी आँखों का मन ना भरें…।।
खुद को रखकर खामोश
बार बार एक ही दर्द हरें…।
अनेक बार कोसा इनकों
फिर भी आँशु ना मरें…।।
बारिश की तरह बरस बरस
कर, बूंद बूंद बस यहीं कहें…।
बनकर नागिन कि तरह
आँखों को कितनी दफा वो डचें…।।
लेखिका- आरती सिरसाट
बुरहानपुर मध्यप्रदेश
मौलिक एवं स्वरचित रचना