खामोशी
((( ख़ामोशी ))))
दिखता काला अहित कहीं !!
ये ख़ामोशी कुछ ठीक नहीं !!
( 1 )
अपने जो कहलाते हैं !
वही जो रिश्ते-नाते हैं !!
विवेकहीन जो हो चुके !
विचार उनके मर चुके !!
पल भर को वे जल्लाद हो जाते !
डालके घासलेट बेटी को जलाते !!
हम सब चुप्प देखते रह जाते !
सब सुन के गुप-चुप हो जाते !!
हमारी मानो ये कोई जीत नहीं !
ये खामोशी कुछ ठीक नहीं !!
( 2 )
बीच बाजार में नारी की मर्यादा लुटती !
जुबां पे मर्दों की तब खामोशी दिखती !!
चीखती-चिल्लाती वो फरियाद करती !
बचाओ-बचाओ की वो आवाज़ करती !!
तब कहीं सोई होती मर्दों की मर्दांगी !
ऐसी है आज के समाज की बानगी !!
नारी के संग नर की इज़्ज़त जाती !
इतनी छोटी बात हमें समझ न आती !!
यूँ तो अब नारी-समाज का हित नहीं !
ये खामोशी कुछ ठीक नहीं !!
( 3 )
सरकार है कहीं खामोशी में !
राजनेता हैं वहीं मदहोशी में !!
विधि-विधान सब गोल हुए !
कोर्ट-कचहरी गोल-मटोल हुए !!
शासन-प्रशासन कमज़ोर हुए !
अतताइयों के तो अब शोर हुए !!
पुरूषों की पौरुषता मर गई !
नारी की अस्मिता उजड़ गई !!
नारी-शक्ति अब पराजित यहीं !
ये खामोशी कुछ ठीक नहीं !!
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#दिनेश एल० “जैहिंद”
25. 01. 2017