खामोशी की एक चादर इस संकल्प के साथ
वह घर के किसी कोने में पड़ी एक सामान सी ही एक बुत की शक्ल लिए चली जा रही थी। उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता था कि उसने खामोशी की एक चादर इस संकल्प के साथ अब हमेशा के लिए अपने ऊपर ओढ़ ली हो जैसे कि वह अब उसे मरते दम तक तो कम से कम नहीं उतारेगी। दिन प्रतिदिन बिगड़ते हालातों के सामने उस वीरांगना ने आखिरकार घुटने टेक ही दिए थे। गर आपका परिवार ही आपके खिलाफ खड़ा हो जाये तो यह निर्णय शायद अंतिम होता है और उचित भी। मन ही मन पर एक बात उसने भी ठान रखी थी कि घर से उसे बाहर फेंकने की उसके घर वालों की ही साजिश पर वह कभी अपने जीते जी सफल नहीं होने देगी। इस घर से तो उसकी विदाई उसकी अर्थी उठने पर ही होगी चाहे फिर उसके पीछे उसकी मौत पे रोने वाला इस घर में कोई नहीं भी हो तो।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001