खामोशियां आवाज़ करती हैं
खामोशियां आवाज़ है , मेरे जज्बात की।
लब तक जो न आये, ऐसे सवालात की।
अधूरी ,रिक्त बेबस सी वो मेरी हसरतें
चीखती चुप के ,वो शोर भरे लम्हात की ।
समेटती रहती है ,जिसे ख़ामोश धड़कने
बिखरी हुई है जो लाशें ख्यालात की।
कानों में रह रह कर, जो गूंजती रहती हैं
धुनें इश्क़ में गाये , दर्द भरे नग्मात की ।
कौन समझेगा मेरे, ये ख़ामोश लहज़ा
किसे बताएं तल्खियां ऐसे हालात की।
सुरिंदर कौर