खाने पुराने
कभी रामरस कभी पसावन भात हुआ करता था।
लिट्टी चोखा दाल तो यारों भोज हुआ करता था।
औरा इमली आम की चटनी सतुआ के संग भाता था।
चना चबैना, भूजा और गुड़ परिवार बैठकर खाता था।।
गुदुरी चाहे मटर की हो या अरहर की सबको भाती थी।
मकूनी रोटी और आम मुरब्बा दादी चाव से खाती थी।।
कोदो सांवा जौ बाजरा तीसी मोटा अन्न हुआ करता था।
खाकर महुए कुसुली की रोटी मन प्रसन्न हुआ करता था।।
दही दूध और इनरी घी बस, तब सोचो जीवन कैसा था।
प्रेम बहुत बीमारी कम थी ‘संजय’, लोगों पे कम पैसा था।।
जय हिंद