खानाबदोश
कविता में गहराई और महफिल में तन्हाई ढूंढते हैं।
बड़े नाकारा हैं वो लोग अपनों में बेवफाई ढूंढते हैं।।
मामा में कंस और रावण में अपना वंश ढूढते हैं।
ऐसे तैराक लोग अपनी कश्ती के साथ डूबते हैं।।
मां में मक्कारी और बीबी में वफादारी नजर आती है।
ऐसे औलादों की बेमौत मरने की खबर ही आती है।।
परिवार में घुटन और बाजार में शीतल हवा मिलती है।
धुवां धुवां सी उनकी जिंदगी की खाक नही मिलती है।।
सच से भागते रहते है, ये असत की जिंदगी बिताते हैं।
खानाबदोश है ये सब “संजय” बस अपनों को सताते हैं।।
जय हिंद