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28 Oct 2018 · 1 min read

!!! ख़्वाब फ़रोख़्त* !!!

जब कहीं
सुकून की साँसे
नसीब न हुई
ज़िन्दगी के बाजार में,
खुशफ़हमियाँ
आबाद न हुए
इस दिले आज़ार में,

शहर-ए-किताब में
दो शब्द खुलुश के नहीं,
मौसम-ए-दर्द ने
न छोड़ा दामन कभी,

दिल के हर कोने में
नये गिरह उलझते हैं,
अब तो मुरादे भी
यहाँ दम तोड़ चुके हैं,

ज़िन्दगी के कैन्वास का
रंगीन कम और
स्याह रंग ज्यादा हूँ,
इसलिए ए दोस्त !
मैं ख़्वाब बेचने पर आमादा हूँ !!!
——————————–

*फ़रोख़्त – बिक्री

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 359 Views

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