ख़्याल
मुझे एक ख़्याल बनाकर
बेख्याली में ही सही
अपने ख़्यालों में रख लो ना
इसरार ही समझ लो ना ।
तस्वीर कुछ बोलती नहीं तुम्हारी
पर नजर मेरी
कुछ बयां तो करती है
अनकहा ही समझ लो ना ।
शोर मचाती खामोशियां अब
ठहर सी गई हैं,
अपनी तस्वीर में इन्हें
समा लो ना।
एक ख़्याल बनाओ मुझे
या अपनी ठहरी नजर में
एक ख्वाब की तरह
बसा लो ना ।
बेरंग बेनूर से
इस तन्हा जहान में
तुम्हारी चाहत
दर्द सी ज़िंदा है,
उड़ जाऊं तुम्हारी रूह
के संग आसमान में
जहां रूहानियत है बस
ना एक भी परिंदा है।
ना कोई ख्वाहिश ना तमन्ना
ना आरज़ू बची है यारब
मतलबी इस दुनिया में
गुंजाइश नहीं जुस्तजू की अब।
भटकती निगाहों को
कोई ठौर तो मिले
उसी जगह जहां चले गए हो तुम
मुझे भी वहीं बुला लो ना।
और मुद्दत हुई रूह से
सवाल करते हुए अब
पर जवाब न मिला मुझे
इकरार ही समझ लूं क्या?
डॉ सीमा ©